बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

दीप-मालिका-08

बाहर का उजियाला देखो अंतर्दीप जलाओ , मेरे प्यारे मित्रों निश-दिन दीपक ख़ुद बन जाओ ॥
मन मन्दिर का दीपक हमको संप्रभुता दिखलाता , बाह्य जगत के अन्धकार का दिग्दर्शन करवाता ॥
अपने दिल की दीप-मालिका सबको हर्षित करती , आठों प्रहर आनंद कराती सदा दिवाली लाती ॥
सभी नमस्ते इन्दो वाले तामायो को मिलते , तम-तमाट को दूर भगाते प्यार सबों को देते ॥
होली-दिवाली को मिलकर आनंदित हो जाते , एक दूसरे सहयोगी बन सुंदर कर्म कराते ॥

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