रविवार, 15 नवंबर 2015

२३ november अग्निवेश का जन्म – दिवस

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मेरा जापान प्रवास
शर्मा अरुणा अग्निवेश, सिंडिकेट बेंक, जोधपुर (राजस्थान)
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२३ नवम्बर"= मेरे प्राणप्रिय पतिदेव स्वर्गीय अग्निवेश का जन्म – दिवस
आपसे बिछुडे दसवां वर्ष बीत रहा है । आपके चरणों में यह श्रद्धा - सुमन **** सिंडिकेट बेंक में सेवा करते समय आपने जिस पत्रिका में आपका एक लेख प्रकाशित करवाया था ; उसी पत्रिका में प्रकाशनार्थ यह "मेरा जापान प्रवास " समर्पित करती हूँ ।
आपके आशीर्वाद और तत्कालीन चेयरमेन कृष्ण मूर्ति जी आदि की कृपा से मुझे भी सिंडिकेट बेंक में सेवा करने का लाभ मिल गया । अलवर से जामनगर और जामनगर से जोधपुर की शाखाओं में सेवा करते समय मुख्य शाखा मणिपाल से मुझे विदेश प्रवास की स्वीकृति मिली ।
२३ ओक्टोबर २००८ की प्रभात , मै जापान की राजधानी टोकियो के नारिता नामक विमान स्थल पर उतरी । मेरे भारत की राजधानी दिल्ली और इस विमान मथक की व्यवस्था का दर्शन और अध्ययन मेरे जीवन का एक नया अध्याय बन गया है । जिससे मेरे भारत और जापान के पारस्परिक विकास - कार्य में मै भी अपना सहयोग दे सकूँगी ।
नारिता विमान मथक से टोकियो के हानेदा विमान मथक तक पहुँचने के लिए मुझे रिमझिम बस मिली। एक स्थान से दूसरे स्थान तक की यातायात व्यवस्था में मैंने सर्दी -गर्मी -वर्षा का तनिक भी व्यवधान नही पाया। मेरे चालीस दिवस के इस प्रवास में जापान के टोकियो-तो, ओसाका-फु , क्योटो-फु,ताकाराझुका-केन,ह्योगो-केन, फुकुई-केन, वाकायामा-केन तथा सिकोकू द्वीप के एहिमे-केन आदि प्रान्तों में अनेक ग्राम और शहर देखने के लिए मेरी सासुजी ले गई । एक दिन मेरा गला घुट गया , श्वास लेना भी मुश्किल हो गया । मेरी सासुजी डा. इनामुरा हिरोए शर्माजी ने मुझे आयुर्वेदीय उपचारों से दो दिन में स्वस्थ कर दिया । इस कारण मैं वायु-यान, जल-यान के अतिरिक्त अनेक प्रकार के स्थल यानों में आनंद पूर्वक यात्राएं कर पाई ।
जापान में जमीन के ऊपर तीन मंजिलों और जमीं के नीचे के तीन -चार तलों तक चलती रेल गाड़ियों का, टेक्सी -बस व कारों के प्रवास में मेरी सासु डा. इनामुरा हिरोए शर्माजी के उपचार से कहीं भी वातावरण की कठिनाई नहीं रही ।
जापान के नागरिकों का , दुकानदारों का, होटल-रेस्टोरेंट- बेंक -पोस्टोफिस-हॉस्पिटल-रेल-बस-विमान आदि में काम करने-कराने वालों का व्यवहार अनुकरणीय है तथा अलग अलग लेखों के रूप में प्रकाशन-योग्य है । जिससे हम भारत के विभिन्न २ क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारी और नागरिक कुछ नवीनता का उपार्जन कर पाएंगे ।
यहाँ मै मेरे जल-पोत से १६ घंटो समुद्र प्रवास का ही विस्तृत रूप से वर्णन प्रस्तुत करती हूँ,जिससे इस संसार-सागर के अनेक लपेडे-थपेडों में आपसे बिछुड़ जाने पर भी आपकी याद-दाश्त तरो-ताझा बनती रहे मेरे अग्निवेश ! यही मेरा आपकी दसवीं संवत्सरी पर तर्पण है ।
पापा और मै सिन ओसाका स्टार हाइट्स से दि०१६-११-'०८ रवि वार सुबह ०८ बजे रवाना हुए। तीन मिनिट में जमीं के अन्दर चलने वाली रेलवे लाइन "मिदोसुजी सेन " के निशि नाकाजिमा-मिनामी काता स्टेशन पर पहुंचे । ओसाका सिटी की ९ अंडर ग्राउंड रेलवेजमें इस मिदोसुजी लाइन (जिसके २३ स्टेशन हैं) के सभी निशान लाल रंग के हैं । ओसाका सिटी की ९ अंडर ग्राउंड रेलवेज को अलग अलग रंगों में दिखलाया गया है। इनका जाल पूरी ओसाका सिटी में फैला हुवा है जिससे ओसाका शहर में कहीं भी जाना हो, जल्दी से जल्दी और सस्ते भाव में मुसाफिरी की जासकती है।
ओसाका के उत्तर से दक्षिण तक पहुँचाने वाली ये सब से बड़ी लाइन है । हमें इस लाइन से तेंनोजी तक जाना था । जिसके लिए तीन हजार जापानीज येन का एक पास ख़रीदा । यह पास,ओसाकाकी सभी ९ चिका तेत्सूओ में काम में लिया जा सकता है । एक साथ ३००० येन का पास खरीद लेने पर ३०० येन की मुसाफिरी अधिक की जा सकती है । तेंनोजो तक पहुँचने में २७० येन लगे परन्तु प्लेटफार्म से बाहर निकलने पर देखा तो इस पास पर शेष ३०३० येन छप गए थे । हमें कामी नो ताईशी ग्राम जाना था । यह ग्राम ओसाका कारपोरेशन के बाहर होने से हमें दूसरी रेल का टिकिट लेना पड़ा।ओसाका में जमीन के ऊपर चलने वाली ६ रेलें हैं ।किन्तेत्सू लाइन कायह स्टेशन तेंनोजी स्टेशन से चिपका हुआ होने पर भी इसका नाम ओसाका-आबेनो है । टिकिट ४३० येन का था।३० मिनिट में कामी नो ताईशीग्राम पहुँचगए। पापा के तथाकथित पौत्र श्री आल्हाद सराफ स्टेशन पर उपस्थित थे,क्योंकि ओसाका-आबेनो से विदाई के पहले केतै देन्वा द्वारा सूचना दे दी गई थी । उनकी प्रियतमा ने सब दिन हमारी अच्छी खातिरी की । ग्राम-दर्शन कराया जिसकी चित्रावली प्रस्तुत है ।
सायंकाल ८ बजे हम लोग शिकोकू टापू पर जाने के लिए विदा हुए । वापस तेंनोजी पहुंचे । वहाँ से मिदोसुजी लाइन के द्वारा दैकोकुचो पहुंचे । यहाँ से हमने जमीन के अंदर चलने वाली दूसरी लाइन योत्सुबाशी सेन पकड़ी । इस लाइन को गहरे नीले कलर में दिखलाया गया है। इस में ११ स्टेशन हें। इसके अन्तिम स्टेशन सुमिनोकोएन पर हमने तीसरी गाड़ी,जिसका नाम न्यू ट्राम है, पकड़ीयह न्यू ट्राम किसी चालक और गार्ड के बिना ही जमीन से तीन मंजिल ऊपर चलती है। इसके सभी स्टेशन हलके नीले रंग में हैं। इसके चौथे स्टेशन फेरी टर्मिनल पर हम उतरे । हमारी जल यात्रा रात्रि के १०.३० पर ओरेंज फेरी नाम के जलपोत के द्वारा शुरू हुई। यह जलपोत एक अच्छे बड़े होटल जैसा है। जिसमें बड़े से बड़े, भारी से भारी ट्रक और कारें चढ़ रही थी। दूसरे दरवाजे से कुछ कारें व ट्रक उतर भी रहे थे । हम भी एक लम्बी कतार से जलपोत के प्रवेश द्वार पर पहुँचे,जहाँ हमें अंदर जाने के लिए एस्केलेटर मिला ।
जब हम उसके दूसरी मंजिल पर पहुँचे तो चमाचम करती लाइटें और स्वागत कक्ष के विशाल हाल में हमारी आखें चकाचोंध हो गई । यहाँ हमारा स्वागत हुआ और हमारा टिकिट येन ५७०० वाला था, लेकर एक व्यक्ति हमें हमारे रहने के कक्ष तक ले गया । इस जलपोत में ५ प्रकार के कक्ष हैं, जिनमें २////२५ मुसाफिर एक साथ रह सकते हैं। टिकिट की दर एक व्यक्ति एक प्रवास १५०००येन तक का होता है। आने-जाने का टिकिट एक साथ खरीद लेने पर ३०% कम कर दिये जाते हैं । सामान्यतया ५०० लोगो के लिए खान-पान, रहन-सहन, खेल-कूद आदि की व्यवस्था तीन मंजिलों में विभक्त है ।
पुरुषों व स्त्रियों के लिए अलग अलग सुंदर एवं स्वच्छ शौचालय हैं, जो हर एक घंटे में सुखा कर साफ कर दिये जाते हैं। सफाई कर्मचारी साफ करके अपनी स्वाक्षरी किया करता है। इस जल पोत की दो विभिन्न दिशाओं में पुरुषों और स्त्रियों के लिए बड़े बड़े स्नानागार और जल-कुण्ड हैं, जिनमे १० -१० लोग एक साथ गले तक डूबे गरम पानी में बैठ कर आनंद से स्नान कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग अलग बैठकें और शेम्पू तथा रिंस की बड़ी बड़ी बोतलें उपलब्ध रहतीं हैं, जिन्हें समय समय पर भर दिया जाता है। गरमागरम जल में गोते लगा कर तथा फव्व्वारों से स्नान करने-कराने का लुत्फ़ साथ साथ सागर को देखने का मजा कुछ अधिक ही उत्साह दायक रहता है।
इस जल -पोत में मशीन में लिखे/बताये जापानीज येन डाल कर अपनी पसंद की खान-पान की वस्तुएं लीं जा सकतीं हैं। इसके अलावा दुकान से भी यथोचित मूल्य पर टावेल , टूथ ब्रश , कंघा , खान-पान की पेक बंद सुखी चीजें भी खरीदी जा सकतीं हैं । इतना ही नही, होटल में बैठ कर १०० लोग गरमागरम भोजन भी कर सकते हैं।
जापान का प्रसिद्ध गेम पचिन्को और इलेक्ट्रोनिक गेम्स भी खेले जासकते हैं । शरीर को दबाने की मशीनों वाली बड़ी बड़ी कुर्सियां भी हैं । हर सुविधा के लिए अलग से खर्चा करना पड़ता है ।
मुफ्त में सोफों पर बैठ कर टी ०वि० के साथ साथ समुद्र की हिलोरें देख ।धूम्र पान वाले दूसरे कक्ष में यही सुविधा लेते रहते हैं। तीनों मंजिलों में गर्मी व ठंडी के अनुकूल वातावरण रखा जाता है। फिर भी तीसरी मंजिल कुछ अधिक ही सुविधा वाली है परन्तु शहरी अतमोस्फेयर वाली है । परन्तु बहार जाकर खुले आसमान का यदि आनंद उठाना हो तो मौसम का मुकाबला करने का कुछ अधिक ही उत्साह जुटाना पड़ेगा । आप की अपनी पसंद है , तीनों मंजिलों से बहार जाने की सुविधा है ।बहार की बहार तो अलग ही है --चारों ओर पानी ही पानी , खुला आसमान, जमीन और जल की परिधि । अथाह सागर ही सागर जिसमें कहीं आप समाये हुए हो मेरे पतिदेव !
इस प्रशांत महा सागर की यात्रा ८ घंटों में पूर्ण हुई । हम तोयो नामक समुद्र सतह पर उतरे ।
सामने श्रीमान साइतो यूगेन उपस्थित थे । क्योंकि फेरी टर्मिनल से विदाई के पहले केतै देन्वा द्वारा सूचना दे दी गई थी । प्रातःकाल ६ बज कर १५ मिनिट हुए थे । ४० मिनिट की यात्रा से शिकोकू द्वीप , एहिमे केन के निहामा शहर में हाग्युजी नामक बुद्ध-मन्दिर पहुचे । श्रीमान साइतो युगेन इस मन्दिर के अधिपति हैं । जापान के शिकोकु नामक द्वीप में ८८ अथवा ३३ मंदिरों की परिक्रमा लगाई जाती हैं । उन मंदिरों में से ये भी एक प्रसिद्ध मन्दिर है । जिसमें नेपाल के स्वयंभू नाथ मन्दिर जैसा विशाल बहुत ऊंचा शिखर, पर्वतों की उचाइयों में दिखाई देता हैं । पास में बांस की खेती है जिसके कच्चे मूल की सब्जी व अचार खाया जाता हैं । इस मन्दिर के अनुयायियों की अस्थियों को रखने और उनकी पूजा करने के लिए अति सुंदर ५०० अलमारियाँ हैं।
लौटते समय दिन के २ बजे से ७.३० घंटो का प्रवास इसी जलपोत से किया । अपार संसार समुद्र की गहराईयों और मर्यादाओं को देखने का अवसर मिला । जिसमें मेरे पतिदेव विलीन हो चुके हैं । मेरी सास डा० इनामुरा हिरोए शर्मा जिन्होंने २० वर्ष भारत में रहकर आयुर्वेद का स्नातकोतर अभ्यास किया और १९८२ में मेरा विवाह कराया तथा जापान आयुर्वेद सोसायटी के ३० वें अधिवेशन पर मुझे बुलाकर मेरे ससुर की सेवा करने का अवसर दिलवाया इसके लिए मैं जापान में आयुर्वेद की जननी डॉ० इनामुरा हिरोए शर्मा की ऋणी हूँ.साथ ही आज के दिन मन्दिर में मुझे ले जा कर पतिदेव तर्पण की अनुज्ञा प्रदान करने के लिए कृतज्ञता अभिव्यक्त करती हूँ ।
आज के दिन मन्दिर में मुझे ले जा कर जापानी विधि से स्वर्गीय अग्निवेश शर्मा नाम एक बांस के बने पत्ते पर लिखवा कर पाताल भेदी कूप में मंत्र पाठ के साथ डलवाया । पुजारी ने बुद्ध मूर्ति के समक्ष हमें बिठलाकर पूजा करवाई और मेरे पतिदेव का नामोच्चारण करते हुए विधिवत् प्रार्थना की।
आज दसवीँ स्वर्गारोहण जयंती के दिन १० अतिथियों के स्वागत-सत्कार का लाभ भी प्राप्त किया ।
इन्होंने मुझे भारतीय भोजन की अध्यापिका के रूप में भी अपने विद्यार्थियों के समक्ष उपस्थित किया ता .२९.११.०८ शनिवार के इस प्रचार पत्र की प्रतिलिपि प्रस्तुत है ।

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