सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

हम सब की आँखों का तारा, दुलारा, प्यारा , भारत देश ; इसमें भ्रष्टा चार जो होते, देते मन को ठेस ;
हमारा प्यारा भारत देश ॥ स्थायी ० ॥ अत्याचार २

इसमें बहती नदियाँ गंगा, करती मन को चंगा ; हिमगिरि के उत्तुंग शिखर से, गौमुख की ये तरंगा ;
भारत माँ की धरती प्यारी पावन होती वंगा ; तपते तन की प्यास बुझाती, खेती करती चंगा ।
सिन्धु , चम्बल , जमुना , तापी , कावेरी परिवेश ॥ १॥ हमारा प्यारा भारत देश०

अलबेलीं बोलीं बहुतेरीं, भाषायें भी अनेक ; अत्याचारी चोरी करते खुद के घर में नेक;
ईश्वर की सत्ता को मानें, वे मत भी नहीं एक ;"उनको दया का पाठ पढावें ", हर जन की हो टेक ।
भाँति भाँति के परिधानों में नर -नारी के वेश ॥२॥ हमारा प्यारा भारत देश ०

धर्म सनातन प्रेम अहिंसा सत्य सिखाता सब को ;चोरी , जारी , बदमाशी से नफरत करना सीखो ;
अपने मन के मैल मिटाता वो हिन्दू बन जाता ;हिन्दूत्व-शक्ति से हिल -मिल, जग-बन्धु बन जाता ।
संघ - मन्त्र से हर मानव को, दें शान्ति -सन्देश ॥३॥ हमारा प्यारा भारत देश ०

विश्व-शान्ति से सुख-मय जीवन मानव की चाहत है ;द्वापर युग का आरोहण है , कलियुग से राहत है ;
कलि-मल गंजन, युग की गुंजन ब झगडे टालत है ;हममुस्कुराते मिलते सबको,कुछ भी नहीं लागत है ।
आविष्कारों से पहना दें , त्रेतायुग का भेष ॥४॥ हमारा प्यारा भारत देश ००००

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

मैं महती सरिता का जलकण, मेरा काम अनवरत बहना ।
पथ में आते हर पत्थर से, टकराकर भी कभी ना रुकना ॥स्थायी॥

मैं ना वेग से बहने वाले, बरसाती नाले का पानी ।
सर्दी गर्मी वर्षा सब मे, कल-कल करती मेरी वाणी ॥
पथ में आते हर पत्थर को, कर्कश-स्वर में कभी ना कहना ॥१॥
मेरा काम अनवरत बहना, मै महती सरिता का जलकण::::::::

सहस्रार से आज्ञा लेकर, स्वर को विशुद्ध हर दम रखना ।
और अनाहत से शरीर में, प्राणों को सञ्चारित करना ॥
इस कारण अमृत कहलाता, जलकण को बहते ही रहना ॥२॥
मेरा काम अनवरत बहना, मै महती सरिता का जलकण::::::::
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गुरुवार, 28 जनवरी 2010

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

 

 

 

 
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