मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

मैं महती सरिता का जलकण, मेरा काम अनवरत बहना ।
पथ में आते हर पत्थर से, टकराकर भी कभी ना रुकना ॥स्थायी॥

मैं ना वेग से बहने वाले, बरसाती नाले का पानी ।
सर्दी गर्मी वर्षा सब मे, कल-कल करती मेरी वाणी ॥
पथ में आते हर पत्थर को, कर्कश-स्वर में कभी ना कहना ॥१॥
मेरा काम अनवरत बहना, मै महती सरिता का जलकण::::::::

सहस्रार से आज्ञा लेकर, स्वर को विशुद्ध हर दम रखना ।
और अनाहत से शरीर में, प्राणों को सञ्चारित करना ॥
इस कारण अमृत कहलाता, जलकण को बहते ही रहना ॥२॥
मेरा काम अनवरत बहना, मै महती सरिता का जलकण::::::::
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