गुरुवार, 17 मार्च 2011

होलिका-दहन

इस जीवन की यादें फिर से ताजा होती रहतीं हैं ,
दैनन्दिनी तिजोरी मे से सब को बाँटी जातीं हैं ॥

"होलिका - दहन "

राग:- गोरे गोरे चाँद से मुख पर , काली काली आँखें हैं ############ दिनांक ०६मार्च १९८५ ई०
रात जला दी हमने होली, सुख सपनों की प्रण को ले कर ; निकल पडे हैं रंग खेलने, कर्म-मार्ग की बलिवेदी पर ॥स्थायी०॥
आज धुलण्डी चण्डी जागी, आवाहन देती है हमको ; अपने अपने जीवन से कुछ, इस दुनिया में कर जाने को ।क्या ?
राग जला कर द्वेष मिटा कर, आओ प्यारों अब हिल-मिल क‍र; निकल पडें हम रंग खेलने, कर्म-मार्ग की बलिवेदी पर @१@
अपना जीवन बडा निराला, एक एक से हम हैं आला ;सुरापान अभिमान छोड कर, पिया प्रेम का हमने प्याला। वाह::
आओ भाई बहनों मिल कर, रंग चढा दें इक दूजे पर; निकल पडें हम रंग खेलने, कर्म-मार्ग की बलिवेदी पर@२@
कौनसा रंग?
काला और सफेदा कोई, रंग नही माना जाता है; पीला लाल सुनहरा प्यारा, रंग सदा सुन्दर लगाता है।
लेप-रहित कर्मों को करना, सदा "हरितरंग"में ही रम कर;निकल पडें हम रंग खेलने, कर्म-मार्ग की बलिवेदी पर@३@श्लेषालंकार%
नीच ऊँच का भाव मिटा कर, सबको अपना सा करना है;मदद सदा सबको करना है,नर से नारायण बननाहै ।
“ऐहोरे" निज आदर्शों से, चलते रहना कर्म-भूमि पर; निकल पडें हम रंग खेलने, कर्म-मार्ग की बलिवेदी पर@४@
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राग:--जीना उसका जीना है,जो औरों को जीवान देता है############दिनांक २७ मार्च १९८६ ई०
हो-- होम दिया इस जीवन से, ली-- लीपा-पोती का वह कारण ; की- कीट जहाँ पैदा होती,
क-- करना उसका हर दम मारण । वि-- विषयों के वश मे होने से, ता-- ताकत का होता है जारण ;
कि-- किस किस को कहें यहाँ यारों, -- सब को बेकार लगे वारण॥ को-- कोई सुन कर जब अमल करे,
सु-- सुनना वह है जो हो धारण ; ना-- ना ना, खुद को ही कह कर के, उँ--उँदा ‌"ऐहोरे" हो जीवन ॥
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