शनिवार, 19 अगस्त 2017

चित्तप्रसुप्तिः

                            मङ्गलम्


अहङ्कारः कुतो यातो बुद्ध्या नैव विचिन्वते । 
चित्तप्रसुप्तिः सञ्जाता तुरीयान्तर्गतं मनः ॥१॥
चिदानन्दार्णवे मग्नं मनः क्वापि न सज्जते । 
यत् किञ्चिज्जायते तत्तु मया नैव प्रबुध्यते ॥२॥
कोऽहं जाने नात्र शम्भो शिवः साक्षाच्छिवः शिवः।
मङ्गलं तन्वते नित्यं विश्वस्मिञ्जगति स्थितौ ॥३॥







मेरी एञ्जियोग्राफी

मेरी एञ्जियोग्राफी
सामान्य जीवन के गतिमान् व्यवहार में विगत कुछ वर्षों से साथ में चलती आ रही कमजोरी तथा जामनगर के घर को छोड़ कर निकलने के बाद के विशेष संघर्षमय जीवन में लिखी जा रही " निर्वाण षट्क " नामिका दैनन्दिनी में दि०२९ जनवरी एवं ११ और २४ फर्वरी आदि की जैसी परिस्थितियों ने मिल कर आक्रमण कर दिया । तेवीस साल पहले सन् १९९४ फर्वरी की दुर्घटना से टूटी ११ हड्डियों के कारणःःउठने-बैठने-चलने-फिरने में तो अशक्ति थी ही; ग्यारह साल पहले सन् २०१६ मे प्रोस्टेट के ओप्रेशन के बाद रात्रि में चार-पाँच बार मूत्रोत्सर्ग से निद्राभंग तो होता ही था, शरीर को हिलाने-डुलाने में 'हूँ' हुँ' उच्चारण " उद्गीथ " तन के मन से संघर्ष पर मेरा सदा विजयःःदिला ही रहा है ःःःअब उस सब के साथ-साथ \क दिन तमोदर्शन ( आँखों के सामने अँधेरा सा छा जाना, खड़े होने पर सर का चकराना, इधर-उधर-आगे भी कदम नहीं रख पाना,दिल के धूजने जैसा लगना, वक्षस्थल का भारीपन, मन और तन का संघर्ष, बल का क्षीण होना आदि लक्षणों ने होस्पीटल जाने का सोच लिया गया ।" मार्च मास का अन्त होते होते इस जीवन का अन्त भी नजदीक आगया लगता है "ऐसा लगने पर MARCH३१ तारीख की शाम मेरे रक्त-चाप को मापा गया । डाँ० इनामुरा हिरोए शर्मा कुछ घबराई । होस्पीटल जुसो शिमिन् ब्योइन् लेजाना-लेआना, चौबीसों घण्टे सावधानी के साथ रहन-सहन- भोजन आदि में सेवामें जुट गई. मैं तो इस हालत को शीघ्र हृदयाकाश से चित्ताकाश की विलीनता का दि०८ दिसेम्बर २०१६ वाले दिन के इस निर्वाण षट्क वाले आयोजन की सफलता मानता हूँ ...सही समय....सही मार्गदर्शन...और मन को दी गई प्रेरणा को एक निमित्तमात्र मान रहा हूँ । उच्चावच मेरा रक्त-चाप १००\४० में ही रहा करता था । मन के साथ तन के संघर्ष ने इसे द्विगुणित जैसा कर दिया है । जीवन-संगिनी भी इस जीवन को इताना जल्दी मार्चपास नहीं होने देना चाहती है । बसःःःसेवा में जुट गई है ।
एप्रिल एक और दो शनि-रवि होने से ०३ तारीख को प्रोस्ट्रेट के विचार से मूत्रवह स्रोतस् वाले डाक्टर से मिले । मूत्र में विकार पाया गया । एन्टीबायोटिक सात दिन तक लिया । दि०४ को हृदय-परीक्षण वाले डाक्टर का निर्धारण हुआ । सात दिन तक ई०सी०जी० मापने को मिला यन्त्र घर लाये । घबराहट जैसी हालत में हृदय पर लगा कर उस मशिन से स्वयं रेकोर्डिंग करता रहा । ता०११ को होस्पीटल में उस मशीन के ग्राफ ने बतलाया कि मेरे देह में ऐसा कोई विकार नहीं है । ता० ११ को सी०टी० स्केन किया, ता०१३ एको परीक्षण हुआ ता०१८ को C T = Computed tomography स्केन से पता लगाया गये निदान को हमें बतलाया गया कि "हृदय के मांसपिण्ड (मायोकार्डियम) को प्राणवायु-प्रभूत-रक्त से पोषित करने वाली मुख्य 'कोरोनारी आर्ट्रीज'ः दाहिनी धमनी में ७५% और बाँई धमनी में ५०% चूना जमा हो गया है । एञ्जियोग्राफी करनी चाहिये । मैनें इस पर मेरे परिवार के विचार माँग लिये । फेस-बुक द्वारा अनेक विचार मिल गये ॥
क्या है एञ्जियोग्राफी-
ओक्सीजन-प्रभूत रक्त वाहिका धमनीः- The arteries are the blood vessels that deliver oxygen-rich blood from the heart to the tissues of the body. Each artery is a muscular tube lined by-
- smooth tissue and has three layers:
A: The intima, the inner layer lined by a smooth tissue called endothelium; B: The media, a layer of muscle that lets arteries handle the high pressures from the heart; C: The adventitia, connective tissue anchoring arteries to nearby tissues.


स्वाध्याय का सारांशः- 'एञ्जियोग्राफी' एक निदान की पद्धति है साथ साथ मध्यवर्त्ती चिकित्सा भी थोड़ी हो जाती है । इसमें ओक्सीजन-प्रभूत रक्त वाहिका धमनी की शल्यक्रिया के द्वारा एक मजबूत नलिका ( केथेटर )को हृत्पिण्ड के मायोकार्डियम नामक मांस को सुपोषित रखने वाली ' कोरोनरी आर्ट्री ' नामिका बाईं और दाहिनी धमनियों तक पहुँचा कर विशिष्ट-रंजक-पदार्थ को सूचीवेध के द्वारा तत्तत् स्रोतोरोधक स्थानों पर पहुँचाकर Fluoroscopy फ्लुओरोस्कोपि फोटोग्राफी से विविध चित्र लिये जाकर उनके अन्तर्वर्त्ती कोषाणुओं (एण्डोथेलियल सेल्स) पर जमगये चूने(केल्शियम) को कुचर कर हटाया जाता \ जासकता है ; अथवा उस स्रोतोरोध की दशा का परीक्षण मात्र किया जाता है ।
चूना ( केल्शियम )- संसार में, यह हर किसी रचना का एक संघटक तत्व है । रक्तवाहिनियाँ सदैव रक्त में मध्यम-प्रमाण में रहने वाले केल्शियम ( चूने ) को संपूर्ण देह में संवहन करतीं ही रहतीं हैं । चूने की प्रभूत मात्रा अस्थियों में, मध्यम मात्रा रक्त में और अल्प मात्रा कोषाणुओं में होती ही है । "सम से सम का वर्धन होता है" यह आयुर्वेद का सर्वमान्य पहला सिद्धान्त है । रक्त के साथ परिवाहित मध्यम मात्रा वाला चूना रक्त वाहिकाओं की अन्तर्वर्त्ती कोषाणुओं (एण्डोथेलियल सेल्स) में भी अल्प मात्रा में होता ही है । यह किसी भी प्रकार के "-वैगुण्य" होने से उस जगह देह में हर कहीं 'समःसमम् अनुधावति आन्तर्यतः'(साँ०दर्शन, वाचस्पति मिश्र) जमा हो जाता है । अत एव यदि एञ्जियोग्राफी करा भी लीःः१ः निदान हो गया \ २ चूना कुचर भी दिया गया तो फि नया चूना जमने लगेगा । क्योंकि यह तो एक स्वाभाविक जीवन-प्रक्रिया है । साठ वर्ष की वय के बाद मानव-मात्र के देह में चालू हो जाती है । संसार के समस्त मानव में पाई गई है । चूना (केल्शयम), स्नेह(कोलेस्ट्रोल), नियम-बद्ध-मृत-कोषिकायें (सेल्स), नियम-विरुद्ध-मृत-कोषिकायें (सेल्स) आदि मानव तन में जिस-किसी अंग-प्रत्यंग के स्रोतस् में गति-हीन होकर अवरुद्ध हो जाते हैं; वहीं पर स्रोतोरोध होने से अलग नामकी व्याधियाँ उत्पन्न हो जातीं हैं ।
"एञ्जियोग्राफी नहीं कराना है" परिवार के विचारों के (पार्लियामेण्ट्रीःबहुमत में) और इतने दिनों के मेरे और डाँ०इनामुरा हिरोए शर्मा के स्वाध्याय ने यह निर्णय; आज दि०२२ एप्रिल '१७ की प्रभात में करवा लिया है ।
चिकित्साः किसी में ज्यादा तो किसी में कम । यदि ९०% से ज्यादा चूने का भराव जिस किसी भी अवयव में हो जाय तो शल्य-चिकित्सा कराई जाती है । क्योंकि गतिविधि में अवरोध होने लगता है और अनेक प्रकार की तकलीफें मानव को भुगतनी पड़ती हैं,
मेरी वय और कार्यशक्ति के साथ दैनिक जीवन-चर्या को समझने वाले विविध डाक्टरों के परामर्श के बाद तथा हम दौनों के स्वाध्याय के बाद यह निर्णय लिया गया है "एञ्जियोग्राफी नहीं कराना है" क्योंकि संयमित जीवन चर्या, योगासन आदि जो आयुर्वेदीय उपचार हैं, इनके सिवाय इसकी कोई चिकित्सा नहीं है । आधुनिक चिकित्सा में रक्त के घनत्व को तरलता देने वाली एस्पेरिन् , be on aspirin वाली दवाइयाँ बिमारी को दबा दिये रखतीं हैं, आजनम उनका सेवन करना पड़ता है और अनेक नये दूसरे विकारों को आमन्त्रित भी कर लिया जाता है । । फिर भी यदि साथ आयुर्वेदीयपद्धति का सहरा नहीं लिया जाय ःः मरण तो अवश्यंभावी है । रक्त के घनत्व को तरलता देते रहने से " देहं 'रक्त' इति स्थितिः"देह के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग और संपूर्ण कोषिकाओं पोषित करते रहना और सबल बनाये रखना रक्त पर ही निर्धारित है । आधुनिक दवाइयों से रक्त को तरलित करवा देना ठीक नहीं । साथ ही एञ्जियोग्राफी नहीं कराना ही उचित है

**************************************************************************************



मूलाधार और सहस्रार का सम्बन्ध

दि०१८ अगस्त २०१७ सवेरे छै बजे नींद टूटी । धीरे धीरे उठा । हमेशा की तरह कुल्ला कर, पानी पी, शौचालय तक पहुँचा ः॥ः बैठे बैठे विचार आया ःःये नीरोग दन्तमंजन सामने ही रखा है, थोड़ा पाउडर बाईं हथेली में ले कर दाँत मलने लगा । यह चू र्ण उड़ कर सीने पर फिर पेट पर लगने लगा ; लाल लाल रसता हुआ तरल साथल़़ और पेट पर भी गिरने लगा >>दातुन का काम तो पूरा हुआ पर मजबूरी में स्नान करना पड़ा । पड़ा रहा वहीं पर काफी देर तकःःःःःसहस्रार पर फँव्वारा गिरता रहाःःःःःनाभि पर भी गिराने लगाःःःःःकाफी देर तकःः उठा; स्नानालय साफ किया । बाहर आ कर प्रति दिन की तरह छत पर जा कर कोयलों से परिशुद्ध जल दो बोटलों में भर कर, तुलसीमैया को सिँचित कर , रसोई के पास कुर्सी पर बैठने की तैयारी में ही था ; इनाम्माजी आ गईं । दूध गरम करने का काम मुझ पर डाल दियाःःःहो गया ् दौनो कप भर दिेयेःःःबैठा मेरी कुर्सी परंंंंं ये सब काम स्वतः होते गये । मुझे कुछ पता नहीं..... कोई अनजानी गतिविधि ही थी ....संस्कृत के श्लोक स्वतः निकल रहे थे....मैं बोलाःःः "ये पागलपन अच्छा है" ्््् इसी हालत में विचरण करते रहो ््् लोग समझेंगे ःःःकोई पागल हैःःः आज का यह समय बहुत सुन्दर है ््््॥ इनाम्मा जी ने एक चूर्ण का नाम बताने के लिये दिया, जरा सा चखाःःःबतला दियाःःःःहींग हैःःःसहस्रवेधी ,जतुकं , बाल्हीकं , हिंगु , रामठम्ःःःसब पर्यायों का अर्थ भी समझा दिया । मैं बोला " ना तो मैं जागा हुवा हूँ , ना सोया हुवा हूँ , ये सब काम तो हो ही रहा हैःःःःःःःवह सुगन्ध तो चेतना शक्ति तक पहुँच गईःःःःःःः ््््जैसे मुझे नींद में से जगा दिया होःःःःः आश्चर्यःःःगीता का श्लोक " आश्चर्वत् पश्यति कश्चिदेनम् आश्चर्वद् वदति तथैव चान्यः । आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति ्््् हँस पड़ा ्््््पागलपन दूर हुआ ॥ चैतन्य समा गया ॥ समझ गयाःः 'श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ' वाली बात नहीं है ःःःजाना हैःःःमूलाधार ने बुलाया ््््् घड़ी देखी....सवेरे के पौने नो बजे हैं । चेतना बेन दिमाग में आगई । ये १६५ मिनिट अर्ध -चेतनावस्था में ही गुजर गये ॥ इन दौनो चक्रों के पारस्परिक सम्बन्ध का ज्ञान हो गया ॥ सब को बताने के लिये तुरन्त ही लिख दिया...ःःःःंंंं महीं मूला धारेःःःःमन की स्थिति आज्ञा चक्र तक ही है ंंंसकलम् अपि भित्वा कुलपथम्.... >>सहस्रारे पद्मे (चेतना) सह रहसि पत्या विहरसि ॥ सौन्दर्य लहरीःःःःःः॥ मूलाधार की शुद्धि ही गणेश पूजा हैःःःलिखने के लिये नीचे पाँच नम्बर में पहुँचाःःःइनाम्मा जी आईं तब तक में ये लेख पूर्ण हो चुका था । मेरे पेट पर हाथ लगा कर नमस्कार करने वाली को बतला दिया ॥
मुझे ऐसा लगता है कि ये कुण्डलिनी की विहारावस्था थी , जिसमें रमण करता हुआ प्राणी विक्षिप्त जैसा लगता है; ःःऔरों को ः मगर " दिवाना मुझ को लोग कहें , मैं समझूँ जग है दिवाना " वाली स्थिति होनी चाहिये । यदि इस जीवन में ऐसा कुछ सुदीर्घकाल तक बन जाय तो आनन्द से परमानन्द और परा भक्ति बनी रह सकती है , जिसमें बाह्य जगत् को भुला दिया जाता है ॥ वेद मन्त्र और विविध श्लोक स्वतः निकलते रहेंगेःःःःतथास्तु ॥