बुधवार, 27 अगस्त 2008

आनंद

आनन्द ! तुम कहाँ हो ?
मैं आपके भीतर समाया हुआ हूँ । इस लिए किसी को भी दिखाई दे नहीं सकता ।
तुम्हारा दर्शन हो नही सकता ?
नहीं । आप अपने आप में घुसिए , और अन्दर , थोड़े और अन्दर ।
मिल गए ना ? कैसा लगा ?
वाह वाह , अहोभाव , क्या कहना ।
धन्यवाद ।