शनिवार, 19 अगस्त 2017

मूलाधार और सहस्रार का सम्बन्ध

दि०१८ अगस्त २०१७ सवेरे छै बजे नींद टूटी । धीरे धीरे उठा । हमेशा की तरह कुल्ला कर, पानी पी, शौचालय तक पहुँचा ः॥ः बैठे बैठे विचार आया ःःये नीरोग दन्तमंजन सामने ही रखा है, थोड़ा पाउडर बाईं हथेली में ले कर दाँत मलने लगा । यह चू र्ण उड़ कर सीने पर फिर पेट पर लगने लगा ; लाल लाल रसता हुआ तरल साथल़़ और पेट पर भी गिरने लगा >>दातुन का काम तो पूरा हुआ पर मजबूरी में स्नान करना पड़ा । पड़ा रहा वहीं पर काफी देर तकःःःःःसहस्रार पर फँव्वारा गिरता रहाःःःःःनाभि पर भी गिराने लगाःःःःःकाफी देर तकःः उठा; स्नानालय साफ किया । बाहर आ कर प्रति दिन की तरह छत पर जा कर कोयलों से परिशुद्ध जल दो बोटलों में भर कर, तुलसीमैया को सिँचित कर , रसोई के पास कुर्सी पर बैठने की तैयारी में ही था ; इनाम्माजी आ गईं । दूध गरम करने का काम मुझ पर डाल दियाःःःहो गया ् दौनो कप भर दिेयेःःःबैठा मेरी कुर्सी परंंंंं ये सब काम स्वतः होते गये । मुझे कुछ पता नहीं..... कोई अनजानी गतिविधि ही थी ....संस्कृत के श्लोक स्वतः निकल रहे थे....मैं बोलाःःः "ये पागलपन अच्छा है" ्््् इसी हालत में विचरण करते रहो ््् लोग समझेंगे ःःःकोई पागल हैःःः आज का यह समय बहुत सुन्दर है ््््॥ इनाम्मा जी ने एक चूर्ण का नाम बताने के लिये दिया, जरा सा चखाःःःबतला दियाःःःःहींग हैःःःसहस्रवेधी ,जतुकं , बाल्हीकं , हिंगु , रामठम्ःःःसब पर्यायों का अर्थ भी समझा दिया । मैं बोला " ना तो मैं जागा हुवा हूँ , ना सोया हुवा हूँ , ये सब काम तो हो ही रहा हैःःःःःःःवह सुगन्ध तो चेतना शक्ति तक पहुँच गईःःःःःःः ््््जैसे मुझे नींद में से जगा दिया होःःःःः आश्चर्यःःःगीता का श्लोक " आश्चर्वत् पश्यति कश्चिदेनम् आश्चर्वद् वदति तथैव चान्यः । आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति ्््् हँस पड़ा ्््््पागलपन दूर हुआ ॥ चैतन्य समा गया ॥ समझ गयाःः 'श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ' वाली बात नहीं है ःःःजाना हैःःःमूलाधार ने बुलाया ््््् घड़ी देखी....सवेरे के पौने नो बजे हैं । चेतना बेन दिमाग में आगई । ये १६५ मिनिट अर्ध -चेतनावस्था में ही गुजर गये ॥ इन दौनो चक्रों के पारस्परिक सम्बन्ध का ज्ञान हो गया ॥ सब को बताने के लिये तुरन्त ही लिख दिया...ःःःःंंंं महीं मूला धारेःःःःमन की स्थिति आज्ञा चक्र तक ही है ंंंसकलम् अपि भित्वा कुलपथम्.... >>सहस्रारे पद्मे (चेतना) सह रहसि पत्या विहरसि ॥ सौन्दर्य लहरीःःःःःः॥ मूलाधार की शुद्धि ही गणेश पूजा हैःःःलिखने के लिये नीचे पाँच नम्बर में पहुँचाःःःइनाम्मा जी आईं तब तक में ये लेख पूर्ण हो चुका था । मेरे पेट पर हाथ लगा कर नमस्कार करने वाली को बतला दिया ॥
मुझे ऐसा लगता है कि ये कुण्डलिनी की विहारावस्था थी , जिसमें रमण करता हुआ प्राणी विक्षिप्त जैसा लगता है; ःःऔरों को ः मगर " दिवाना मुझ को लोग कहें , मैं समझूँ जग है दिवाना " वाली स्थिति होनी चाहिये । यदि इस जीवन में ऐसा कुछ सुदीर्घकाल तक बन जाय तो आनन्द से परमानन्द और परा भक्ति बनी रह सकती है , जिसमें बाह्य जगत् को भुला दिया जाता है ॥ वेद मन्त्र और विविध श्लोक स्वतः निकलते रहेंगेःःःःतथास्तु ॥

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