रविवार, 15 नवंबर 2015

अमेरिका के अलास्का स्टेट में औरोरा-दर्शन

एक अविस्मरणीय प्रवास माइनस २० से कभी कभी -४० तक के तापमान और तेज वायुवेगी वातावरण में अलास्का स्टेट ( अमेरिका ) के फेअरबेंक्स हवाई अड्डे से ४० किलोमीटर के इर्द-गिर्द क्षेत्र का पाँच दिन और पाँच रात का प्रवास है । एक रात और एक दिन जाने आने में विमान विहार होजाता है । माइनस २० से कभी कभी -४० तक के तापमान और तेज वायुवेगी वातावरण में अलास्का स्टेट ( अमेरिका ) के फेअरबेंक्स हवाई अड्डे से ४० किलोमीटर के इर्द-गिर्द क्षेत्र का पाँच दिन और पाँच रात का प्रवास है । एक रात और एक दिन जाने आने में विमान विहार होजाता है । यहाँ चारों ओर जमीन से पेड़ों और पहाड़ों तक की दूरियों पर बर्फ ही बर्फ की जमावट है । मानव अपने घुटनों तक की ऊँचाई में खड़ा रह कर फोटो भी खिंचवा लेता है। लकड़ी आदि के बने दो-तीन मंजिले होटलों और छोटे छोटे भोजनालयों तथा जीवन की सब प्रकार की गतिविधि के लिये रहने की विविध कार्यालयों में मानव ने सानुकूल तापमान बनाये रखने की अच्छी व्यवस्था कर ली है ॥ उत्तरायण में यह प्रवास उत्तरदिशा का था । माघ मास का शुक्ल पक्ष था *[i]शुक्लकृष्णे गती ह्येते जया एकादशी से माघ कवि जयन्ती तक में (३० जनवरी से ०३ फर्वरी २०१५) द्वापर युगाब्द ३१५ में महाप्रयाणार्थ बड़ा ही उत्तम मुहूर्त निकला था ; मुझे उन पाँचों की पञ्चत्वगति जैसी गति पाने के लिये; जो कि द्वापरयुग के शूरवीर और अलग अलग विद्याओं में निपुण थे उन पाँचों पाण्ड़वों की माता कुन्ती का पौत्रवधू को दिया गया आशीर्वाद * भाग्यवन्तं प्रसूयेथा: न शूरं न च पण्डितम् । शूराश्च कृतविद्याश्च वने सीदन्ति मामका: ॥ वार्धक्य के कष्ट से भरपूर जीवन में उन पाँचों के जैसी पञ्चत्वगति पाने की मेरी इच्छा और मेरी धर्मपत्नी इनाम्माजी की मुझे जिलाये रखने की इच्छा और अनेक चेष्टाओं से बातों ही बातों में कृष्ण पक्ष चालू हो गया था फाल्गुन का । आपसी संवाद में ईश्वर ने निरुत्तर कर मुझे जापान लौटा लाये ॥ पहली रात वेस्टमार्क होटल से १० बजे से उष:काल के ४ बजे तक के समय में बस के द्वारा दूर दूर[1] तक जा कर मात्र फोल्डिंग चेयर और बेंचों पर बैठ कर एकाएक निकल आते हुए औरोरा दर्शन के लिये खुले आसमान में खड़े रह कर आकाश से धरती तक फैलाये गये[2] सूर्य के प्रतप्त वातावरण से धरती के शीतल वातावरण की टकराव के कारण कभी कभी बन गये इस औरोरा के सद् भाग्य से ही दर्शन हुआ करते हैं । उस उत्तरीय हरीतिमामय प्रकाश से मानव मात्र के हृदय में एवरग्रीन बने रहने का आनन्द मिलता रहता है । एकादशी से पूर्णिमा तक के रात-दिन के जागरण से तीसरी रात [3]को चेना हाँट स्प्रिंग के रूम से बाहर माइनस ३५ डिग्री सेण्टीग्रेड के तापमान में निकलने की मेरी ताकत खत्म हो गई थी । वहाँ की बर्फीली धरती से ९०० मीटर ऊँचे चेना पहाड़ पर जाना था । विगत चार दिन और चार रात के सन्तत जागरण से खत्म ताकत ने भले रूम से बाहर नहीं निकलने दिया ; परन्तु शारीरिक दर्द के साथ साथ बाईं निचली दंष्ट्रा के तीन दिन से चलते दर्द ने रूम में भी नींद तो नहीं लेने दी । दर्द को दर्द रहने दो के आग्रही स्वभाव ने जेब में रक्खी हुई पेन किलर गोलियों को मुँह तक भी नही जाने दिया । मेरे शारीरिक थकान की सीमा पार होचुकी थी । एसिटाइल कोलाइन का प्रमाण नाड़ीतन्त्र के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में इतना बढ गया था कि टसकना भी भारी लगता था, जरा सा भी विपरीत भाव हो जाने पर, मेरे स्वभाव के विरुद्ध [4] क्रोध को बढ़ावा देरहा था । सूर्य की ज्वालामुखी से निकलती वायु के इलेक्ट्रोन, प्रोटोन आदि पदार्थों का धरती के चुम्बकीय आकर्षण-मण्डल और धरती तथा सूर्य के मध्यवर्ती वातावरण में सोलर कोरोना से निकले वातातप से नेओन गेस के द्वारा नाइट्रोजन ७८% और आँक्सीजन २१% के सामान्य रूप मे मिश्रण से विभिन्न वर्ण उत्पन्न हो जाते है । इन्हें अवकाशीय मंडल तक पहुँचने में दो दिन लग जाते हैं । यहाँ एकत्र होने पर नाइट्रोजन और आँक्सीजन  की अधिकता से हरित रंग दिखाई देता है । पृथ्वी से ४०० मील की दूरी पर इलेक्ट्रोन्स को शीतल वायुमण्डल मे आने पर एक वर्ष की रात्रियों में लाल वर्णमण्डल १०० बार और पीत वर्णमण्डल ४० से १०० बार अलास्का में नासा पोलर सेटेलाइट के माध्यम से देखा गया है । यह उत्तर और दक्षिण दौनो दिशाओं में समान रूप से देखा जाता है । फार अल्ट्रावायलेट इमेजर के द्वारा इलेक्ट्रोन्स की एकत्रित गतिविधि से क्रमिक रूप से बिखरती हुई इलेक्ट्रोन् बीम की एक हरितरेखा दिखाई देती है । नासा पोलर सेटेलाइट के द्वारा दक्षिणी ध्रुव की ओर आस्ट्रेलिया और न्यूजीलेण्ड के बीच एवं उत्तरी ध्रुव की ओर अलास्का में इसके विविध आकार दिखाई दिये हैं, जिनके चित्र हर साल खींचे जा रहे हैं विशेष अभ्यास के लिये ६२,००० मील की दूरी से आते हुए अति प्रबल वेगवान् इस इलेक्ट्रोनिक बीम को दौनों ध्रुवों पर एक साथ देखा जा रहा है । सन् १९६८ की मार्च २६ के युनिवर्सल टाइम १०:४८:०५ पर ठीक उसी क्षण में उत्तरी और दक्षिणी दौनों ध्रुवों पर लिये गये चित्र नेट पर उपलब्ध हैं ॥ प्रत्यूषस् समय में चेना के सर्वोच्च शिखर का प्रवास कर लौटी हुई धर्मपत्नी का टसकते हुए भी स्वागत किया । पाँचवें दिन का प्रभात था । निर्धारित समय पर आठ कुत्तों की जोड़ी से दौड़ाने वाली कार्ट में मजे लूटने के लिये जाना था । इनाम्मा जी उस -४० डिग्री सेंटीग्रेड़ के बर्फीले तथा शरीर को ठिठुरादेने वाले तापमान में और तीव्र गति की दौड़ान में सामने से आने वाली बर्फीली प्रचण्ड हवा की मार से हो सकने वाले दुष्प्रभाव से बचने के लिये चलने का मना कर रही थी । पर मेरा आग्रह इतनी तकलीफ सहन करते रहने पर भी प्रबल रहा । हम सब सोलह लोगों के वर्ग में साथ साथ जुड़ गये । इस कुत्ता कार्ट की एक साथ चार लोगों की बैठक में मुझे सब से आगे वाली इनाम्माजी के प्रसारित पावों के बीच की बैठक मिली । हम सभी अध लेटे से, एक दूजे में घुसड़े से बैठे थे ।एक साथ जोते हुए आठ कुत्तों की पूरी तरह चारों ओर से खुली कार्ट के दौड़ान में श्वास लेने के लिये मफलर से ढके मास्क को हटाया कि बस नाक के दौनों पुट सूख गये । मार्ग मे मिले स्वागत निशान के नीचे बर्फकणिकाओं में बैठ कर फोटो भी खिंचवा ली । उसके बाद रूम में पहुँच कर नासापुटों में क्रीम लगाते रहा । फिर भी दाहिने नासा मार्ग के सेप्टम में क्षत हो गया । शरीर मर्दन (मसाज) और तेलमालिश का अनुभव कराने की चेना हाँट स्प्रिंग में व्यवस्था रहती है । मेरी धर्मपत्नी इनाम्माजी की चेष्टा रही । हमारे दुमंजिले मकान से काफी दूर वहाँ मसाज के स्थान पर गई । पूछ-ताछ करने पर मालुम हुआ कि इस दिन वहाँ की छुट्टी है । इनाम्माजी निराश थीं ::::छोटी इ से इनाम्मा जी की इच्छा में बड़ी ई की ईश्वर की इच्छा ने योगदान किया ॥ वहीं पर खड़ी टोकियो से आई हुई श्रीमती नीत्तो.आकेमी. ने सुन लीं थीं ये सब बातें :- "मेरा पति बुढ्ढा है, चल-फिर नहीं सकता , इसलिये व्हील चेयर पर है । पाँच रात-दिन की भरसक थकान और दंष्ट्रा-शूल से पीड़ित है, उसे शरीर पर मालिश मिल जाय तो कुछ रिकवरी हो जाय "आदि::आदि सत्ताईस साल के बेटे औेर २३ साल की बेटी की माँ आकेमी नीत्तो ने देवदूती की तरह इनाम्माजी का हाथ पकड़ लिया । रूम नम्बर ले लिया । यथासमय मेरे अंगमर्द को मिटा देने के लिये देवदूती आ पहुँची । इस शरीर पर अनेक तरह के मर्दन और तेलमालिश के अनुभव हुए हैं । भारत, यू.एस.ए., इण्डोनेशिया और जापान के विविध केन्द्रों के अलावा सिंगापुर, बेंकाक, फिन् लेंड, नोर्वे, स्वेडन, ऐस्टोनोया, ताइवान, चीन, लंदन, वियतनाम आदि अनेक देशों के अंगमर्द-प्रशमन नामक बाह्य उपचार का स्वयं के शरीर पर अनुभव कर लेने के बाद विद्यार्थियों को सिखाने के लिये हर जगह पर व्ययपूर्वक समय निकाला है । इस बार चेना हाँट स्प्रिंग (अलास्का) का अनुभव भले नहीं मिला परन्तु ईश्वर के द्वारा प्रेरित नीत्तो बहन ने जिस तरह अंगूठे एवं मुठ्ठी की मार से 90 मिनिट तक सारे शरीर को रगड़ रगड़ कर मेरे नाड़ीतन्त्र और मांसपेशयों में फँसे हुए एसिटाइल कोलाइन को निकाल कर मुझे तरोताज़ा कर दिया, मेरे नव-जीवन के लिये यह परमेश्वर-प्रसाद अविस्मरणीय रहेगा ॥  *****&&&&&&&&&******* [1] :: शनिवार अमेरिका में ३१ जनवरी, जापान-भारत में ०१ फर्वरी २०१५ माउण्ट औरोरा स्काइलेण्ड, २३२०, फेयरबेंक्स क्रीक रोड़ [2] :: रविवार फर्वरी ०१, चान्दालर राँच ,५८०४ चेना हाँट स्प्रिंग रोड़ , पोष्टबाँक्स ७४८७७ फेयरबेन्क्स [3]:: दो दिन-रात का चेना हाँट स्प्रिंग में निवास था । ओसाका से आने-जाने की दो रातें मिला कर कुल छै दिन और छै रात का प्रवास था । [4]::चरक संहिता इन्द्रिय स्थान स्वभाव विप्रतिपत्ति अध्याय के अनुसार [i]  :::Auroras are caused by charged particles, mainly electrons and protons, entering the atmosphere from above causing ionization and excitation of atmospheric constituents, and consequent optical emissions. Incident protons can also produce emissions as hydrogen atoms after gaining an electron from the atmosphere. सूर्य की ज्वालामुखी से निकलती वायु के इलेक्ट्रोन, प्रोटोन आदि पदार्थों का धरती के चुम्बकीय आकर्षण-मण्डल और धरती तथा सूर्य के मध्यवर्ती वातावरण में सोलर कोरोना से निकले वातातप से####################### The immediate cause of the ionization and excitation of atmospheric constituents leading to auroral emissions was discovered in 1960, with a pioneering rocket flight made from Fort Churchill in Canada, to be a flux of electrons entering the atmosphere from above oxygen emissions green or orange-red, depending on the amount of energy absorbed. Nitrogen emissions blue or red; blue if the atom regains an electron after it has been ionized, red if returning to ground state from an excited state. Interaction of the solar wind with Earth The Earth is constantly immersed in the solar wind, a rarefied flow of hot plasma (a gas of free electrons and positive ions) emitted by the Sun in all directions, a result of the two-million-degree temperature of the Sun's outermost layer, the corona. The solar wind reaches Earth with a velocity typically around 400 km/s, a density of around 5 ions/cm3 and a magnetic field intensity of around 2–5 nT (nanoteslas; (for comparison, Earth's surface field is typically 30,000–50,000 nT).   यहाँ चारों ओर जमीन से पेड़ों और पहाड़ों तक की दूरियों पर बर्फ ही बर्फ की जमावट है । मानव अपने घुटनों तक की ऊँचाई में खड़ा रह कर फोटो भी खिंचवा लेता है। लकड़ी आदि के बने दो-तीन मंजिले होटलों और छोटे छोटे भोजनालयों तथा जीवन की सब प्रकार की गतिविधि के लिये रहने की विविध कार्यालयों में मानव ने सानुकूल तापमान बनाये रखने की अच्छी व्यवस्था कर ली है ॥ उत्तरायण में यह प्रवास उत्तरदिशा का था । माघ मास का शुक्ल पक्ष था *[i]शुक्लकृष्णे गती ह्येते जया एकादशी से माघ कवि जयन्ती तक में (३० जनवरी से ०३ फर्वरी २०१५) द्वापर युगाब्द ३१५ में महाप्रयाणार्थ बड़ा ही उत्तम मुहूर्त निकला था ; मुझे उन पाँचों की पञ्चत्वगति जैसी गति पाने के लिये; जो कि द्वापरयुग के शूरवीर और अलग अलग विद्याओं में निपुण थे । उन पाँचों पाण्ड़वों की माता कुन्ती का पौत्रवधू को दिया गया आशीर्वाद * भाग्यवन्तं प्रसूयेथा: न शूरं न च पण्डितम् । शूराश्च कृतविद्याश्च वने सीदन्ति मामका: ॥ वार्धक्य के कष्ट से भरपूर जीवन में उन पाँचों के जैसी पञ्चत्वगति पाने की मेरी इच्छा और मेरी धर्मपत्नी इनाम्माजी की मुझे जिलाये रखने की इच्छा और अनेक चेष्टाओं से बातों ही बातों में कृष्ण पक्ष चालू हो गया था फाल्गुन का । आपसी संवाद में ईश्वर ने निरुत्तर कर मुझे जापान लौटा लाये ॥ पहली रात वेस्टमार्क होटल से १० बजे से उष:काल के ४ बजे तक के समय में बस के द्वारा दूर दूर[1] तक जा कर मात्र फोल्डिंग चेयर और बेंचों पर बैठ कर एकाएक निकल आते हुए औरोरा दर्शन के लिये खुले आसमान में खड़े रह कर आकाश से धरती तक फैलाये गये[2] सूर्य के प्रतप्त वातावरण से धरती के शीतल वातावरण की टकराव के कारण कभी कभी बन गये इस औरोरा के सद् भाग्य से ही दर्शन हुआ करते हैं । उस उत्तरीय हरीतिमामय प्रकाश से मानव मात्र के हृदय में एवरग्रीन बने रहने का आनन्द मिलता रहता है । एकादशी से पूर्णिमा तक के रात-दिन के जागरण से तीसरी रात [3]को चेना हाँट स्प्रिंग के रूम से बाहर माइनस ३५ डिग्री सेण्टीग्रेड के तापमान में निकलने की मेरी ताकत खत्म हो गई थी । वहाँ की बर्फीली धरती से ९०० मीटर ऊँचे चेना पहाड़ पर जाना था । विगत चार दिन और चार रात के सन्तत जागरण से खत्म ताकत ने भले रूम से बाहर नहीं निकलने दिया ; परन्तु शारीरिक दर्द के साथ साथ बाईं निचली दंष्ट्रा के तीन दिन से चलते दर्द ने रूम में भी नींद तो नहीं लेने दी । दर्द को दर्द रहने दो के आग्रही स्वभाव ने जेब में रक्खी हुई पेन किलर गोलियों को मुँह तक भी नही जाने दिया । मेरे शारीरिक थकान की सीमा पार होचुकी थी । एसिटाइल कोलाइन का प्रमाण नाड़ीतन्त्र के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में इतना बढ गया था कि टसकना भी भारी लगता था, जरा सा भी विपरीत भाव हो जाने पर, मेरे स्वभाव के विरुद्ध [4] क्रोध को बढ़ावा देरहा था । सूर्य की ज्वालामुखी से निकलती वायु के इलेक्ट्रोन, प्रोटोन आदि पदार्थों का धरती के चुम्बकीय आकर्षण-मण्डल और धरती तथा सूर्य के मध्यवर्ती वातावरण में सोलर कोरोना से निकले वातातप से नेओन गेस के द्वारा नाइट्रोजन ७८% और आँक्सीजन २१% के सामान्य रूप मे मिश्रण से विभिन्न वर्ण उत्पन्न हो जाते है । इन्हें अवकाशीय मंडल तक पहुँचने में दो दिन लग जाते हैं । यहाँ एकत्र होने पर नाइट्रोजन और आँक्सीजन  की अधिकता से हरित रंग दिखाई देता है । पृथ्वी से ४०० मील की दूरी पर इलेक्ट्रोन्स को शीतल वायुमण्डल मे आने पर एक वर्ष की रात्रियों में लाल वर्णमण्डल १०० बार और पीत वर्णमण्डल ४० से १०० बार अलास्का में नासा पोलर सेटेलाइट के माध्यम से देखा गया है । यह उत्तर और दक्षिण दौनो दिशाओं में समान रूप से देखा जाता है । फार अल्ट्रावायलेट इमेजर के द्वारा इलेक्ट्रोन्स की एकत्रित गतिविधि से क्रमिक रूप से बिखरती हुई इलेक्ट्रोन् बीम की एक हरितरेखा दिखाई देती है । नासा पोलर सेटेलाइट के द्वारा दक्षिणी ध्रुव की ओर आस्ट्रेलिया और न्यूजीलेण्ड के बीच एवं उत्तरी ध्रुव की ओर अलास्का में इसके विविध आकार दिखाई दिये हैं, जिनके चित्र हर साल खींचे जा रहे हैं विशेष अभ्यास के लिये ६२,००० मील की दूरी से आते हुए अति प्रबल वेगवान् इस इलेक्ट्रोनिक बीम को दौनों ध्रुवों पर एक साथ देखा जा रहा है । सन् १९६८ की मार्च २६ के युनिवर्सल टाइम १०:४८:०५ पर ठीक उसी क्षण में उत्तरी और दक्षिणी दौनों ध्रुवों पर लिये गये चित्र नेट पर उपलब्ध हैं ॥ प्रत्यूषस् समय में चेना के सर्वोच्च शिखर का प्रवास कर लौटी हुई धर्मपत्नी का टसकते हुए भी स्वागत किया । पाँचवें दिन का प्रभात था । निर्धारित समय पर आठ कुत्तों की जोड़ी से दौड़ाने वाली कार्ट में मजे लूटने के लिये जाना था । इनाम्मा जी उस -४० डिग्री सेंटीग्रेड़ के बर्फीले तथा शरीर को ठिठुरादेने वाले तापमान में और तीव्र गति की दौड़ान में सामने से आने वाली बर्फीली प्रचण्ड हवा की मार से हो सकने वाले दुष्प्रभाव से बचने के लिये चलने का मना कर रही थी । पर मेरा आग्रह इतनी तकलीफ सहन करते रहने पर भी प्रबल रहा । हम सब सोलह लोगों के वर्ग में साथ साथ जुड़ गये । इस कुत्ता कार्ट की एक साथ चार लोगों की बैठक में मुझे सब से आगे वाली इनाम्माजी के प्रसारित पावों के बीच की बैठक मिली । हम सभी अध लेटे से, एक दूजे में घुसड़े से बैठे थे ।एक साथ जोते हुए आठ कुत्तों की पूरी तरह चारों ओर से खुली कार्ट के दौड़ान में श्वास लेने के लिये मफलर से ढके मास्क को हटाया कि बस नाक के दौनों पुट सूख गये । मार्ग मे मिले स्वागत निशान के नीचे बर्फकणिकाओं में बैठ कर फोटो भी खिंचवा ली । उसके बाद रूम में पहुँच कर नासापुटों में क्रीम लगाते रहा । फिर भी दाहिने नासा मार्ग के सेप्टम में क्षत हो गया । शरीर मर्दन (मसाज) और तेलमालिश का अनुभव कराने की चेना हाँट स्प्रिंग में व्यवस्था रहती है । मेरी धर्मपत्नी इनाम्माजी की चेष्टा रही । हमारे दुमंजिले मकान से काफी दूर वहाँ मसाज के स्थान पर गई । पूछ-ताछ करने पर मालुम हुआ कि इस दिन वहाँ की छुट्टी है । इनाम्माजी निराश थीं ::::छोटी इ से इनाम्मा जी की इच्छा में बड़ी ई की ईश्वर की इच्छा ने योगदान किया ॥ वहीं पर खड़ी टोकियो से आई हुई श्रीमती नीत्तो.आकेमी. ने सुन लीं थीं ये सब बातें :- "मेरा पति बुढ्ढा है, चल-फिर नहीं सकता , इसलिये व्हील चेयर पर है । पाँच रात-दिन की भरसक थकान और दंष्ट्रा-शूल से पीड़ित है, उसे शरीर पर मालिश मिल जाय तो कुछ रिकवरी हो जाय "आदि::आदि सत्ताईस साल के बेटे औेर २३ साल की बेटी की माँ आकेमी नीत्तो ने देवदूती की तरह इनाम्माजी का हाथ पकड़ लिया । रूम नम्बर ले लिया । यथासमय मेरे अंगमर्द को मिटा देने के लिये देवदूती आ पहुँची । इस शरीर पर अनेक तरह के मर्दन और तेलमालिश के अनुभव हुए हैं । भारत, यू.एस.ए., इण्डोनेशिया और जापान के विविध केन्द्रों के अलावा सिंगापुर, बेंकाक, फिन् लेंड, नोर्वे, स्वेडन, ऐस्टोनोया, ताइवान, चीन, लंदन, वियतनाम आदि अनेक देशों के अंगमर्द-प्रशमन नामक बाह्य उपचार का स्वयं के शरीर पर अनुभव कर लेने के बाद विद्यार्थियों को सिखाने के लिये हर जगह पर व्ययपूर्वक समय निकाला है । इस बार चेना हाँट स्प्रिंग (अलास्का) का अनुभव भले नहीं मिला परन्तु ईश्वर के द्वारा प्रेरित नीत्तो बहन ने जिस तरह अंगूठे एवं मुठ्ठी की मार से 90 मिनिट तक सारे शरीर को रगड़ रगड़ कर मेरे नाड़ीतन्त्र और मांसपेशयों में फँसे हुए एसिटाइल कोलाइन को निकाल कर मुझे तरोताज़ा कर दिया, मेरे नव-जीवन के लिये यह परमेश्वर-प्रसाद अविस्मरणीय रहेगा ॥  *****&&&&&&&&&******* [1] :: शनिवार अमेरिका में ३१ जनवरी, जापान-भारत में ०१ फर्वरी २०१५ माउण्ट औरोरा स्काइलेण्ड, २३२०, फेयरबेंक्स क्रीक रोड़ [2] :: रविवार फर्वरी ०१, चान्दालर राँच ,५८०४ चेना हाँट स्प्रिंग रोड़ , पोष्टबाँक्स ७४८७७ फेयरबेन्क्स [3]:: दो दिन-रात का चेना हाँट स्प्रिंग में निवास था । ओसाका से आने-जाने की दो रातें मिला कर कुल छै दिन और छै रात का प्रवास था । [4]::चरक संहिता इन्द्रिय स्थान स्वभाव विप्रतिपत्ति अध्याय के अनुसार [i]  :::Auroras are caused by charged particles, mainly electrons and protons, entering the atmosphere from above causing ionization and excitation of atmospheric constituents, and consequent optical emissions. Incident protons can also produce emissions as hydrogen atoms after gaining an electron from the atmosphere. सूर्य की ज्वालामुखी से निकलती वायु के इलेक्ट्रोन, प्रोटोन आदि पदार्थों का धरती के चुम्बकीय आकर्षण-मण्डल और धरती तथा सूर्य के मध्यवर्ती वातावरण में सोलर कोरोना से निकले वातातप से####################### The immediate cause of the ionization and excitation of atmospheric constituents leading to auroral emissions was discovered in 1960, with a pioneering rocket flight made from Fort Churchill in Canada, to be a flux of electrons entering the atmosphere from above oxygen emissions green or orange-red, depending on the amount of energy absorbed. Nitrogen emissions blue or red; blue if the atom regains an electron after it has been ionized, red if returning to ground state from an excited state. Interaction of the solar wind with Earth The Earth is constantly immersed in the solar wind, a rarefied flow of hot plasma (a gas of free electrons and positive ions) emitted by the Sun in all directions, a result of the two-million-degree temperature of the Sun's outermost layer, the corona. The solar wind reaches Earth with a velocity typically around 400 km/s, a density of around 5 ions/cm3 and a magnetic field intensity of around 2–5 nT (nanoteslas; (for comparison, Earth's surface field is typically 30,000–50,000 nT).  

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