रविवार, 15 नवंबर 2015

शिव-धनुष

शिव धनुष को गोस्वामी तुलसीदासजी ने राहू बताया । (राम चरित मानस, बालकाण्ड २४९ दोहे के बाद की पहली चौपाई ) जनक को यति नित्यचैतन्यजी ने पैदा करने वाला बताया । ( बृहद् आरण्यक उपनिषद् का अंग्रेजी में लिखा महाभाष्य ) प्रकृति को सभी विचारक माया बतलाते हैं, यह सर्व विदित है । पुरुष को यति नित्यचैतन्यजी ने हिरण्यगर्भ से कहा, जो (ब्रह्मा का एक पर्याय है ) । प्रकृति और पुरुष से संसार की सर्जना सर्व विदित है ॥ अब विचार आता है कि प्रकृति और पुरुष दोनों अव्यक्त हैं, दिखाई नहीं देते परन्तु इनकी सर्जना से संसार का रूप दिखला देने वाले दिव्यांशु और हिमांशु को दुनिया जानती है " सूर्य-चन्द्रमा " जिनके प्रभाव से पैदा हुए सभी प्राणी जीवित रह पाते हैं ॥ यावन् मात्र जीव के जनक को चिन्ता हुई" मेरी पैदाइश के विलायक तत्व शिवधनुष (दानवीभाव) राहू ने यदि सूर्य-चन्द्रमा को ग्रसित रक्खा तो मेरी पैदाइश का नाश हो जायगा" इसलिये प्रतिज्ञा ली कि " शिव-धनुष" राहू को तोड़ कर मेरी प्रजा की रक्षा करने वाले के साथ ही मेरी खेती में मिली बेटी "सीता" का विवाह करूँगा"। स्वयंवर रचा ॥ प्रकृति व्यक्त नही पर इसकी मूर्त रूप पृथ्वी है । इस धरती की बेटी का नाम सीता है , जिसे जनक के खेत में नारी के रूप में पाया गया । जनक ने समझ लिया , "मेरी बेटी के साथ विवाह करने के लिये सही पात्र वही हो सकता है , जो मेरी जनता के पालक सूर्य-चन्द्रमा को दानवी भाव राहू से ग्रसित " तमसो मा ज्योतिर्गमय " अँधेरे में से उजाले में ला सके और जीवित रख सके । इस लिये शिवधनुष (राहू) को तोड़ना जरूरी समझ कर प्रतिज्ञा ले ली । शिव धनुष को तोड़ने वाला जगत का पालक दैवीभाव ही हो सकता है कोई दानवीभाव नहीं । देवऋषि नारद के शाप से जगत के पालक को राम के रूप में अवतार लेना पड़ा । जिसने जनक की प्रतिज्ञा की रक्षा की और संसार के विलायकभाव शिवधनुष ( ज्योति को ढाँक कर तमस फैला देने वाले राहू ) को तोड डाला । परिणाम हुआःःधरती की बेटी सीता का धरती पर सूर्य-चन्द्र की ज्योति से प्रदर्शित जगत के रक्षक राम के साथ संयोग । शिव धनुष तोड़ना एक रूपक है ॥ दानवीभाव राहू का टूटना और जगत में दैवीभाव का फैलना ही रामराज्य की स्थापना है ॥ %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%५ जगत के जनक, पालक और विलयक " ब्रह्मा विष्णु शिव " ये एक ही त्रिक-तत्व के तीन फलक (नाम) हैं । और इनकी मिलीजुली शक्ति से संसार की उत्पत्ति-स्थिति-विलय का वर्णन आदि कवि वाल्मीकि से लेकर अनेक लेखकों ने हमें बतलाया है ॥ संसार को महा अजय कहते हुए दुश्मन बतलाया (रा०च०मा०लंका काण्ड दोहा ८० क )। संसार को अश्व और अश्वमेध से मानवमात्र में समाविष्ट दानवीभाव का विनाश करना ( बृहद् आरण्यक उपनिषद् का सार ऋषि याज्ञवल्क्य ने समझाया )॥ वेदों में बतलाये गये अश्वमेध याग का सार मालुम कर लेना आसान होगया । संसार रूपी शत्रु को जीतने के लिये अश्वमेध यज्ञ सदैव करते रहना बुद्धिजीवी का कर्त्तव्य होगया ।ःःःःःःःःःःः

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