गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

रामरथ

            रामरथ

   राम रावण के समर में विजय का जो सार है

  हर मनुज जीवन विजय में रामरथ ही सार है । स्थायी०॥


    युग युगों तक याद रखने हर मनुज को ध्यान हो

   राम/\रावणभाव में बस रामरथ ही सार है ॥१॥

       संसार में ब सार है संसक्ति जब दूर हों,

    ' सं ' से हटे तो सार है, वरना रिपु संसार है ॥२॥ 

मिटा कर दुर्भाव सारे सरलता से जब रहें,

हटा आसक्ति जुटाना कर्म में ही सार है ॥३॥

      संसार-रिपु के विजय हेतु राम ने उपदेश दे

      ड़र भगाया बिभीषण का कहा तुलसीदास ने ॥४॥

वीर कहलाता वही जो जीत ले संसार को,

रथ बनाया सरलता से मनुज को विजयी बनाने ॥५॥

      चक्र दो हैं शौर्य-धैर्य , ध्वज सदा दृढ़ सत्य है,

      शील सुन्दर है पताका, कर्म में ही हों मगन ॥६॥ 

 बल/\विवेक युगल रहें तब, दमन के सँग परहित/\ 

चार घोड़े रथ चलाने सारथी ईश्वर भजन ॥ ७॥

      धर्ममय साथी सुहृद ले चले चाबुक विरति से
   
     कर इशारे क्षमा/\समता अरु कृपा की लगाम से ॥८॥

 सन्तोष ही तलवार तृष्णा स्वयं कट जाती जहाँ,

दान फरसारूप, समबुद्धि प्रचण्डी शक्ति से ॥९॥

       धनुष नव विज्ञान का मन अमल प्रत्यंचा चढ़ी,

 वे बाण नाना यम-नियम के अचल हों सम लक्ष्य से ॥१०॥

ब्रह्मवर्चस् कवच गुरूपूजा अभेद्य बनी रहे,

जीतना है जगत इस आसान साधनसाध्य से ॥ ११॥

     रामराथ में रमण करते वीर वे ही विजय पाते । 
   संकटों से भरे इस संसार के उस पार की ॥१२॥ 

 विश्वगुरुता दास तुलसी रामचरित सुमानसी ।

 बाँटती सौरभ जगत में हर्ष अरु उल्लास की ॥१३॥


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