डा०
इनामुरा हिरोए शर्मा
और हरि शंकर शर्मा
प्रथम
पटल
भौगोलिक
स्थति:-
वर्तमान
में उत्तर से दक्षिण के बीच
कटिप्रदेश के जैसे पतला परन्तु
एड़ी से चोटी तक अच्छा फैला
हुवा यह प्रदेश विशाल प्रशान्त
महासागर के द्वारा पूर्व से
पश्चिम के ब्राजिल,
अमेरिका,
कानाड़ा
को मिला रहा है । जो त्रिकूट
द्वीप के देश हैं ।भारत से वियतनाम जाने के बीच कोई बड़ा समुद्र नहीं म्यानमर, थाइलेण्ड, लाओस, काम्बोडिया होकर पहुँच जाते हैं ।
आर्यावर्त
=
भारत
से सम्बन्ध:-
काम्बोडिया का अंकोलवट चौदहवीं शताब्दि का आर्यावर्त के इतिहास का जीता-जागता उदाहरण है । यहाँ हमें रामायण और महाभारत के साथ साथ त्रिवर्ग ( पाताल लोक , भूलोक और स्वर्लोक) के अस्तित्व का ज्ञान तीन विशाल विभागों में विभाजित कर कीमती पत्थरों की दीवारों पर कोतर कोतर कर अलग अलग रंगों में भर कर चित्रित \ खचित किया हुआ देखने को मिला । इस सियामरीफ के मार्गों के प्रारम्भ में सड़क के दोनो तरफ शेषनाग के फणों की आकृति को तथा शेषनाग के शरीर के आकार से सम्पूर्ण मार्गों की दोनो ओर की बाउन्ड्री को बनाया गया है । मार्ग के अन्त और दूसरे मार्ग की सन्धि पर चारों तरफ शेषनाग के फणों का आकार भूमि के भार को शेषनाग के द्वारा वहन किया जाने का परिचायक है । सड़कों का इस प्रकार का निर्माण भारतीय संस्कृति में बतलाई गई कथाओं का प्रत्यक्ष परिचायक है ।
काम्बोडिया की राजधानी फ्लोम्फ्नेम के सरकारी प्रदर्शनागार में हमें गणपति की मूर्ति, राधा-कृष्ण की मूर्ति के अवशेष देखने को मिले । भारत से यात्रालु वर्ग उस जमाने में पैदल चल कर भी जा सकते थे, जलयान अथवा वायुयान की आवश्यकता नही थी ॥
आर्यावर्त की एक सीमा का निर्देश करने वाला यह वियतनाम स्थान पुरातन काल में बहुत पूजनीय यात्रास्थल रहा था । जम्बुद्वीप के भद्राश्व खण्ड का यह देवलोक था ।
" वियत्" शब्द विष्णुपद का बोध कराता है । आकाश के पर्याय वाची नामों मे विहायसी भी एक शब्द है । संस्कृत साहित्य के अमरकोश आदि किसी भी कोश में ये पर्यायवाची नाम पढ़े जा सकते हैं ।
प्रलयकाल में शेषनाग पर शयन करने वाले सकल लोक के पालक विष्णु भगवान् के पाँव विष्णुपद की पावन पूजायात्रा करने के मार्ग में सियाम रीफ से भारतीय संस्कृति का अवलोकन करते हुए यात्रीगण भारत से वियतनाम जाया करते होंगे । यह संभावना हमें ई०सन्० २०१४ सितम्बर के दूसरे सप्ताह मे किये गये प्रवास के समय सात साल पहले सियामरीफ अंकोलवट और काम्बोडिया की राजधानी फ्लोम्फ्नेम आदि के प्रवासीय संस्मरणों को लिपिबद्ध कर लेने के लिये प्रेरणास्पद बन गई ।
आर्यावर्त
की सीमा का बोध अनेक पुरातत्व
विभागों के भौगोलिक चित्रों
द्वारा कराया गया है । हमारे
ऐहोरे प्रवासकाल में ईश्वरीय
शक्ति के स्वान्त:स्फुरण
से ऐसा लगता है कि इस प्रशान्त
महासागर में प्रलयकाल के
शेषशायी भगवान् विष्णु के
पाँव वियतनाम और युनाइटेड
स्टेट्स आँफ अमेरिका तथा कनाडा
भगवान् विष्णु का भाल का
प्रदेश रहता होगा । पौराणिकी
कथाओं के आधार पर यह कल्पना
कोई अतिशयोक्ति नहीं
कही जा सकती ॥ समस्त ब्रह्माण्ड
की सर्जना का यह विचार श्रीमद्
भागवत् महापुराण के तीसरे
स्कन्ध के आठवें आदि अध्यायों
में मिलता है ॥
द्वितीय
पटल
वीरता
का प्रतीक :-वियतनाम के वीर सपूतों ने चाइना , फ्रांस , रशिया , अमेरिका जैसे देशों के सामने घुटने नहीं टिकाये । सभी देशों के साम्राज्य-विस्तार-वादी विचारों और संघर्षों का सामना करते हुए उत्तर में हानोई और दक्षिण में साइगोन भाग को टुकड़ों में बँटने नही दिया । ऐसे आदर्श महान् वीर होचिमिन्ह के राष्ट्रीय सुरक्षा सत्प्रयत्नों का परिणाम हुआ है -- वियतनाम की राजधानी का नामकरण साइगोन से परिवर्तन * हो चि मिन् *
BEN
DUOC UNDERGROUND TUNNEL COMPLEX
यह
२०० कि०मी० लम्बी अनेक तलों
वाली ;
रहने,
खाने-पीने,
परिसंवाद
करने तथा युद्ध की शिक्षा देने
के लिये विशेष
प्रावधानों वाली गुफा है ।
इसमें
आने वाले यात्रियों को वीडेओ
द्वारा अनेक चित्र दिखलाये
जाते हैं । जिसमें युद्ध
की तैयारी में लगे निचले दूसरे
तल से निकल कर वियतनामी सैनिक
अमेरिकी सैनिकों को मार डालते
थे । तीसरे तल में हथियार ,
गोला-बारूद
बनाये जाते रहे । यह सब बतलाये
जाने के एक प्रदर्शनस्थल "
कुचि
"
तक
जाकर हमने अभ्यास
किया । भूगर्भ
में सुरक्षित युद्धसज्जा के
विविध विभागों को यहाँ देखे
जा सकते हैं :-
तृतीय
पटल
भारतीय संस्कृति से साम्यता:-
वियतनामी
प्रजा आस्तिक है । भगवान् के
पुराने मन्दिर हैं ,
नये
भी बनवाये जाते हैं । वहाँ
जाकर पूजा सेवा भी की जाती है
; परन्तु
हानोई की विशाल नदी के किनारे
पर बने एक चाइनीज मन्दिर में
दोपहर के समय कोई पुजारी नहीं
था ।
यहाँ
ट्रान् कुओक् पगोड़ा में भारत
के प्रथम राष्ट्रपति डा०
राजेन्द्र प्रसाद जी के द्वारा
१९५९
समर्पित बोधि (पिप्पल
का पेड़)
वृक्ष
खूब अच्छी हालत में दिखाई
दिया,
जिस
पर उनका लेख भी देखने को मिला
।
एक
विशाल मन्दिर वियतनाम की
आज़ादी की बीसवीं सालगिरह पर
१९९५ ई० में बनाया गया । यह
मन्दिर ७०,०००
वर्ग मीटर के विस्तार में
बनाया गया । अपने देशभक्त
बलिदानियों की यादगार के लिये
देशवासियों की खुशियाँ मनाने
मे लिये इसका नाम “BEN
DUOC MARTYR'S MEMORABLE TEMPLE” रखा
है ।शरदपूर्णिमा की रजनी सुरभि के साथ साथ चारु चन्द्र की चंचल किरणों में नाचते गाते नन्हे नन्हे बालकों के साथ चलचित्र में हमें सहभागी बन जाने का आनन्द मिला । सौभाग्य से २०१४ सितम्बर ०८ की रात कहो
दिनांक
०९ की शुरुआत डाँ० इनामुरा
हिरोए शर्मा के जन्मसमय का
मज़ा लूटने का यही सुअवसर रहा
। हानोई के होटल हिल्टन प्लाजा
का यह आनन्द हमारे जीवन में
अविस्मरणीय बन गया ।
राजस्थान
के उदयपुर का कठपुतली नाच
ईश्वर की अंगुलियों पर मानव
की विविध गतिविधि को दिखलाई
देने वाली भारत में केवल जमीन
पर ही देखी थी । हानोई के THANG
LONG WATER PUPPETS THEATRE में
तो यह जलक्रीड़ा देखते देखते
हम हँसी से लोट-पोट
होगये । परमात्मा के विविध
रूपों का यह खेल याद रहेगा ।स्वरों के उच्चारण में संस्कृत भाषा का बोध :-
हमारे प्रवास में मेकोन् रिवर से लौटते समय वियतनामी उच्चारण में एक विशेषता का ज्ञान मिला । एक ही अक्षर उच्चारण-भेद से ६ अर्थ दे देता है । जैसे मा = ma इसके लिये उस अक्षर के ऊपर या नीचे अथवा एक ही स्वर पर एक से अधिक निशान लगाने होते हैं ॥
जापानी काँजी लिपि में एक अक्षर का उच्चारण वैसा ही होता है परन्तु उसके लेखन की विशेषता से अनेक विविध अर्थ हो जाते हैं :- का \ या \ तो इत्यादि इसके उदाहरण हैं ।
पितृतर्पण :-
अपने पूर्वजों की यादगार में उनके नाम, फोटो, विशेषताओं को लिखा जा कर पास पास में पति-पत्नी के ऐसे स्मारक बनाये गये हैं , जहाँ पर बैठ कर दस-बारह परिजन उन उन पूर्वजों की गाथाओं को अपनी अगली पीढी को बतला सकें ॥
हानोई के समुद्र में वर्ल्ड हेरिटेज " हा लोंग बे " का तीन घण्टों का प्रवास भी हमारे जीवन में अविस्मरणीय है ॥ विभिन्न प्रदर्शनागारों में भारतीयता दिखाई दी ।
नगर की रचना :-
हानोई के बाजारों में चलने वाले लोगों की सुरक्षा के लिये सड़क के किनारों पर दोनों तरफ ६-७ फीट की ऊँचाई वाली दीवारों पर चाइना मिट्टी के रंग-बिरंगे टुकड़ों से अपने देश की विशेषताओं का प्रदर्शन भी एक सुविकसित देश की विशेषता बतलाता है । ऊँचे से ऊँ ७२ मंजिल का भी एक मकान है ।
होचिमिन्ह नगर में 1975 September 04 के दिन WAR REMNANTS MUSEUM का उद्घाटन विश्व-शान्ति के लिये किया गया है । यहाँ की तीसरी मंजिल में अधोलिखित लेख न केवल पठनीय है अपितु अपने देश के लिये अनुकरणीय भी है :-
“ Vietnam has the right to enjoy freedom and independence and has really become a free and independent country. The entire Vietnamese people are determined to mobilize all their physical and mental strength to sacrifice their lives and property in order to safeguard their liberty and independence ” ( September 02nd 1945 ).
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